Thursday, October 30, 2008

मुझे तो बचाओ

उत्तर-प्रदेश के हालात जस के तस बने हुए है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। एक सांप नाथ की भूमिका में है तो दूसरा नाग नाथ की। ऐसे हालात में जनता क्या करे। मुलायम सिंह से छुटकारा मिला तो मायावती के मायाजाल में लोग फंसा महसूस कर रहे हैं। सपा के तानाशाही और गुंडागर्दी का मुद्दा बनाकर सत्ता में आई बसपा उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रही है। बस बदला है तो इतना कि सपा शासन में अराजकता सपाई फैलाते थे और अब बसपा के नाम पर कथित तौर से कहने वाले बसपाई हैं। यह कोई कहानी नहीं है, बल्कि कुछ दिनों के अनुभव की दास्तान है। कुछ दिनों पहले मैं अपने गांव गया था। वहां देखा तो गांवों में भी हालात पहले जैसे बने हैं। खासबात यह है कि दबे कुचले लोग अभी भी सिर्फ रोजी रोटी के लिए लड़ रहे है और फिर भी मायावती के गुण गाए जा रहे हैं। वहीं छोटे से छोदे पद पर बैठे नेता पूरे परिपक्व हो चुके है। एक साल में ही जिला अध्यक्ष पद पर रहने वाला व्यक्ति इतने पावर में है कि जहां डीएम उसके सामने बौना बना हुआ है। वहीं चल-अचल संपत्ति भी उनपर मेहरबान हैं। कुछ यहीं हाल अधिकारियों का है। अधिकारी खुलेआम कह रहे हैं कि रुपए दो काम कराओ। नहीं तो बहन जी से जाकर कह दो। ऐसे में लोग यहीं कह रहे हैं कि सपा और बसपा दोनों में क्या अंतर है।