Saturday, November 21, 2009

क्या आतंकी घटना से कम

शिवसैनिकों ने आईबीएन-7 पर तोड़फोड़ की, यहां तक तो ठीक था। क्योंकि ये इनकी आदतों में शामिल हो गया है। लेकिन तोड़फोड़ के बाद शिवसेना ने इस हमले की जिम्मेदारी ली, ये खासबात है। ये कुछ ऐसा ही है जैसे कि किसी आतंकी घटना के बाद लश्करे तैयबा या कोई अन्य आंतकी संगठन लेते हैं। ऐसे में क्या ये सोचा जाए कि मुंबई को भारत से तोड़ने की नाकाम कोशिश की जा रही है या फिर एक समानांतर सरकार चलाने की कोशिश। बहरहाल जो भी हो चाहे टीवी चैनल के आफिस में हमला हो या फिर किसी अन्य प्रदेश के लोगों पर हमला। अब प्रतिक्रिया एक जैसी ही होनी चाहिए और सरकार का रवैया इनके साथ वैसे ही होना चाहिए जैसा किसी देशद्रोह के साथ किया जाता है।

Sunday, August 16, 2009

है ये नायब तरीका

नक्सली मुद्दे पर राष्ट्रीय चर्चाएं चल रही हैं। बड़े-बड़े चिंतनकर्ता और देश को दिशा देने वाले अधिकारी और राजनेताओं क बैठकों का दौर शुरू है। सब अपने-अपने तर्क दे रहे हैं और नक्सलियों से निपटने का दम भर रहे हैं, लेकिन नक्सली वारदातों को अंजाम देकर ये साबित कर दे रहे हैं कि बंद कमरों में मीटिंगों में बनाई गई रणनीति से नक्सली रुकने वाले नहीं हैं। नक्सली की तोड़ वहां काम कर चुके अधिकारी और उनके अनुभव ही हैं या फिर वे लोग जो नक्सल बढ़ने के कारणों को उनके नजदीक रहकर समझ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के शहीद एसपी विनोद चौबे इसकी मिसाल थे, उन्हें किसकी चूक का खामियाजा अपनी जान देकर उठाना पड़ा, अभी इससे पर्दा उठाना बाकी है। लेकिन आपको बता दे कि अभी भी कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जो कम से कम नक्सलियों को खत्म तो नहीं कर सकते हैं लेकिन उनकी तरकीब नक्सल बनने से लोगों को जरूर रोक सकती है। ऐसे ही एक अधिकारी से हमारी मुलाकात हुई, जिन्होंने नक्सली इलाकों में काफी वक्त गुजारा और काफी हद तक अपने क्षेत्र में नक्सलियों की गतिविधियों पर रोक लगाई। मैं उनका नाम तो नहीं बता सकता, लेकिन उनके जो तर्क हैं उसमें में दम दिखता है। अधिकारी, नक्सल इलाकों में तीन चीजों के बढ़ावे को तरजीह देने की सलाह देते हैं। जिसके प्रयोग से नक्सली बनने के प्रतिशत में कम से कम जरूर कमी आएगी। वे हैं जींस का पैंट, क्रिकेट और डिश कनेक्शन। अधिकारी का मानना है कि नक्सली इलाकों में जींस का एक स्टेटस है, यदि इन्हें जींस की पैंट मुहैया करा दी जाए तो ये इसे पहनकर जंगलों में भटकने से कतराएंगे। क्रिकेट का चस्का इन्हें अपने आगोश में ले लेगा और डिश लग जाने से ये फिल्मों का मोह नहीं छोड़ पाएंगे। इनके प्रयोग से नक्सलियों की बैठकों में ये अपना वक्त जाया नहीं करेंगे। ये रणनीति भले सिर्फ इसलिए बनाई जाए कि नक्सलियों की बढ़ती संख्या में विराम लग सके, लेकिन इसके पीछे नक्सली इलाकों में रह रहे लोगों को जो लाभ मिलेगा, वो असली होगा। क्योंकि नक्सली इलाकों में रह रहे लोग इन सभी चीजों से अब तक वंचित हैं और आज ये सभी चीजे जरूरी हो गई है। डिश लगने से बिजली की जरूरत पड़ेगी, क्रिक्रेट खेल से यहां के लोगों में आगे जाने की सोच पैदा होगी और जींस इन्हें स्टेटस बनाने के लिए मजबूर करेगा, जिससे कहीं न कहीं इनके व्यक्तित्व का विकास होगा। इसके अलावा अप्रत्यक्ष रूप से जो लाभ मिलेगा वो दूरगामी होगा। चूंकि अब जो नक्सलवाद की ओर बढ़ रहे हैं उनमें न तो कोई दार्शनिक है और न ही ज्यादा पढ़ लिख पा रहे हैं, बस लोगों के भावावेश में बहकर या गुमराह होकर इस राह में जा रहे हैं। ऐसे में ये तीन चीजें कारगर साबित हो सकती हैं। अगर ये माना जाए कि ये तरीका कारगर साबित नहीं होगा, तो जनाब इससे नुकसान क्या होगा। सरकार, नक्सल समस्या पर करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। ऐसे में यदि इन सुविधाओं पर सरकार रुपए खर्च करती है तो कम से कम लोगों को कुछ तो सुविधा जरूर मिलेगी।

Saturday, May 9, 2009

बाहरी से पहले अंदर के धन को बचाओ

लोकसभा चुनाव से पहले स्विस बैंक में देश का जमा रुपए वापसी का मुद्दा जोर-शोर से उठा।
स्वामी रामदेव ने भी इस मुद्दे को उठाया और एक अभियान चलाया। भाजपा ने इसे अपने चुनावी एजेंडे में शामिल कर चुनावी रंग दे दिया। वास्तव में ये एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि 72 लाख 80 हजार करोड़ की राशि स्विस बैंक में जमा बताई जा रही है, यदि ये धन देश वापस आ जाए तो देश की गरीबी दूर हो जाएगी। लेकिन सवाल ये उठता है कि देश के बाहर रखे धन पर ही जोर क्यों दिया जा रहा है। हम पहले उस धन को बचाएं जो हमारे अधिकार में हैं और हमारे देश के अंदर ही काले धन के रूप में जमा हो रहा है। यानि देश के अंदर भ्रष्टाचार, कुंठित राजनीति और तानाशाही प्रशासन को बदलने की मुहिम। लेकिन इसे मुद्दा न बनाकर स्विस बैंक से धन लाने की मुहिम चलाई जा रही है। स्विस बैंक से रुपए लाने की मुहिम में कोई एजराज नहीं है, लेकिन पहले देश के काले धन का चिट्ठा खोला जाए। जिससे न सिर्फ एक बड़ी रकम का पर्दाफाश होगा बल्कि ऐसी कारतूत करने वालों में भय भी पैदा होगा।

Saturday, April 4, 2009

मीडिया पर मंदी की मार

भाईयों मीडिया का बाजार मंदी में चल रहा है। मिली जानकारी के अनुसार रायपुर का वॉच चैनल भी इससे बच नहीं सका है। चैनल में काम कर रहे आधे से ज्यादा लोगों की छटनी कर दी गई है और हॉल ये है कि अब ये चैनल लगभग ३० लोगों के सहारे चलाया जा रहा है। वॉच चैनल अभी शैशव अवस्था से निकल नहीं पाया था कि बुझने के कगार पर गया है।