Tuesday, January 22, 2008

साल बीता, जमीन बिकी पर नहीं मिली सूचना

नमित शुक्ला
जांजगीर. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका की नियुक्ति के लिए हुई बैठक की कापी, सूचना के अधिकार के तहत मांगने के साल भर बाद भी जानकारी नहीं मिली। इसके लिए आवेदक को अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी।

सूचना का अधिकार आज आफिसों में दम तोड़ रहा है। लोगों ने आवेदन तो किए हैं, पर वे आफिसों का चक्कर लगा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला जनपद पंचायत पामगढ़ के गांव पेंड्री का है। यहां रहने वाली श्रीमती रामेश्वरी लहरे के पति पूरनचंद्र लहरे ने 7 अक्टूबर 06 को पामगढ़ सीईओ से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी। जिसका विषय आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका नियुक्ति के लिए 1 जुलाई 06 को स्वास्थ्य व महिला बाल विकास स्थायी समिति की बैठक की कापी था।इसके बाद से उसका आफिसों के चक्कर काटना शुरू हुआ, जो अब तक खत्म नहीं हुआ है। इस फेर में उसे ढाई एकड़ जमीन में से आधा एकड़ जमीन बेचनी पड़ी।

पामगढ़ सीईओ ने 10 अक्टूबर 06 को संबंधित विभाग को मांगी गई जानकारी एक सप्ताह में उपलब्ध कराने का निर्देश दिया, जो अब तक प्रार्थी को नहीं मिली। दो माह बाद फिर 1 दिसंबर 06 को पूरनचंद्र ने दोबारा महिला बाल विकास कार्यालय, पामगढ़ सीईओ, जांजगीर सीईओ व कलेक्टर को आवेदन किया। पर नतीजा सिफर रहा। 10 मार्च 07 को पूरनचंद्र ने छग सूचना आयोग से आवेदन किया। जिस पर आयोग ने जानकारी न देने पर कार्रवाई करते हुए पामगढ़ महिला-बाल विकास परियोजना अधिकारी को 20 हजार रुपए जुर्माना पटाने का निर्देश देते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया। पर संबंधित विभाग द्वारा 17 जुलाई 07 को निशुल्क जानकारी देने पर जुर्माना कम करते हुए 2 हजार रुपए कर दिया। साथ ही शिकायतकर्ता को मानसिक व आर्थिक क्षति के लिए 500 रुपए देने के निर्देश दिए। ये आदेश आयोग ने 13 नवंबर 07 को दिए। पर प्रार्थी रामेश्वरी लहरे का आरोप है कि एक साल की मशक्कत के बाद भी मिली जानकारी अधूरी है।

मांगी गई जानकारी के अनुसार 1 जुलाई 06 की बैठक की कापी न देकर 5 अगस्त 06 की बैठक की कापी दी गई है। उधर पामगढ़ जनपद पंचायत अध्यक्ष व सदस्यों ने आंगनबाड़ी व सहायिका भर्ती में हुई धांधली के लिए एक शिकायत पत्र कलेक्टर को दिया है।

अधिकारियों के गले की फांसमहिला-बाल विकास विभाग ने राज्य सूचना आयोग को बताया कि मांगी गई जानकारी की कापी 17 जुलाई 07 को उपलब्ध करा दी गई। वहीं विलंब का कारण सूचना अपर कलेक्टर के पास होना बताया गया है। पर रिकार्ड उन्हें कब भेजा गया, इसकी जानकारी आयोग को नहीं दी गई, इस पर आयोग ने सवाल भी उठाया है। इसके अलावा एकीकृत बाल विकास परियोजना अधिकारी ने आवेदक को वांछित जानकारी देने की सूचना भी 17 जुलाई 07 को भेजी। साथ ही प्राथर्र्र्ी रामेश्वरी लहरे को उसी दिन जानकारी दे दी गई। इसका उल्लेख परियोजना अधिकारी ने राज्य सूचना आयोग को दी गई जानकारी में किया है। यह कैसे संभव है?

इसके अलावा इसमें एक और पेंच है। सूचना आयोग को बताया गया कि 1 जुलाई 06 की बैठक अनौपचारिक थी, पर बैठक के कागज अपर कलेक्टर के पास होने व जांच की बात कही जा रही है।
फाइलों का आफिस दर आफिस भटकनासूचना का अधिकार आवेदक के साथ अधिकारियों के लिए भी सिरदर्द बन रहा है। जानकारी पामगढ़ सीईओ से मांगी गई। उन्होंने महिला-बाल विकास परियोजना अधिकारी को पत्र भेजा। इस बीच वह पत्र किन-किन कार्यालयों से होकर गुजरा, कहना मुश्किल है। विभागों की लापरवाही व उदासीनता से आवेदक परेशान हो रहे हैं।

* परियोजना अधिकारी ने बैठक के जो कागज दिए, वे सूचनाकर्ता को उपलब्ध करा दिए गए।- एम.एल. महादेवा, सीईओ-पामगढ़

* गलत जानकारी देने पर फिर से जानकारी का उल्लेख करते हुए सूचना आयोग से अपील की जा सकती है। इसके अलावा यदि आवेदक जानकारी से संतुष्ट नहीं है, तो आयोग की फाइनल रिपोर्ट के बाद हाईकोर्ट में रिट लगा सकता है।- के.एल. ग्वाल, डिप्टी सेक्रेटरी-रायपुर

* मैंने राज्य सूचना आयोग को जानकारी दे दी है। इस पर मुझे पेनाल्टी भी हो चुकी है।-मीरा घाटगे, परियोजना अधिकारी-एकीकृत बाल विकास परियोजना

* 1 जुलाई 06 की बैठक औपचारिक थी। जिसमें स्वीकृत केंद्रों में आंगनबाड़ी व सहायिका की नियुक्ति की कार्रवाई हुई थी। कार्रवाई पंजी में कांट-छांट करने के साथ रजिस्टर को ही बदल दिया गया है। इसकी लिखित शिकायत कलेक्टर से एक साल पहले ही की गई है।- प्रेम प्रकाश खरे, अध्यक्ष-पामगढ़ जनपद पंचायत

आवेदक करे तो क्या..?रामेश्वरी के पति पूरनचंद्र लहरे ने बताया कि 1 साल बाद भी मांगी गई जानकारी नहीं मिली। अब अधिकारी कह रहे हैं कि 1 जुलाई 06 को बैठक हुई ही नहीं, तो यह पहले क्यों नहीं बताया गया। जब बैठक हुई ही नहीं, तो अपर कलेक्टर के पास किस फाइल के जांच की बात कही गई है। पामगढ़, जांजगीर व रायपुर के चक्कर काटे, सूचना आयोग के पास भी हो आए, पर वांछित जानकारी नहीं मिली। इस एक साल में लगभग 60 हजार रुपए खर्च हुए, जमीन भी दांव पर लगा दी। आज कागजों का ढेर लगा है, पर सब बेकार है। इतना सब होने के बाद भी न तो पत्नी को नौकरी मिली न जानकारी।

13 comments:

Ashish Maharishi said...

ददा लिखना जारी रखें

Sanjeet Tripathi said...

स्वागत है नमित जी हिंदी ब्लॉगजगत में। शुभकामनाएं
और हां, छत्तीसगढ़ में है आप तो यह तो जानते ही होंगे कि छत्तीसगढ़ी मे "ददा" का क्या अर्थ होता है। :)

Avinash Das said...

नमित, अंदाज़-ए-बयां सुखकर है।

swaprem tiwari said...

चिट्ठाकारिता में आपका हार्दिक स्वागत है .........

Sanjay Tiwari said...

संजीत भाई ददा का क्या मतलब होता है?

Tarun said...

swagat hai bhai aapka, humare yehan to dadda ka arth big brother hota hai.

Sanjeet Tripathi said...

संजय जी, छत्तीसगढ़ी में "ददा" शब्द पिता के लिए प्रयोग होता है।
दाई-ददा= मां-बाप

अनिल पाण्डेय said...

hamara bhi pranam dadda ko..

36solutions said...

नमित भाई, धन्यवाद ।

बाल भवन जबलपुर said...

चिन्ताकारक मामला है
इन लोगों के साथ ज़रूर कठोर कारर्वाई होनी चाहिए

अनूप शुक्ल said...

सूचना का अधिकार रंग लाते-लाते लायेगा। लिखते रहिये। जमकर!

नमित शुक्‍ला said...

sabhi bhaiyo ko mera namskar. aap longo ne is field me mera jo protsahan kiya. useke liye thanks

नमित शुक्‍ला said...

yaar mera dada nahi balki dadda hai