Tuesday, July 29, 2008

जिन्दगी में हर पल एक सा नही रहता। ये बात सब जानते है लेकिन उस पल से निपटने या kउशी से गुजारने का रास्ता नही निकाल पाते सच में क्या यही जिन्दगी है.

5 comments:

Ashish Maharishi said...

kya hua mere dost

राज भाटिय़ा said...

नमित भाई तुम हम कितना भी सोच लो, कुछ भी कर लो उस पल से बच पाना, असम्भाव हे, सुना हे ना होनी तो हो के रहे, अन्होनी ना होये.
धन्यवाद सुन्दर विचार के लिये

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

बालकिशन said...

इसके अलावा भी बहुत कुछ है जिंदगी.
और ये अपना रास्ता स्वयं बना लेती है.

नमित शुक्‍ला said...

छग मे तीसरे दल का उदय हो सकता है। यह दल सतनामी और आदिवासी समाज के लोगों का बनाया जा रहा है। इसके संकेत रविवार को आयोजित सभा में शिबू सोरेन व बालदास ने एक ही मंच में आकर दे दिया है। यदि राजनीति का यह स्टंट चला तो आगामी चुनाव में भूचाल हो सकता है।